10. दर्द के दायरे
दर्द के दायरे,
उभरते हैं, फैलते हैं,
फिर,
डूब जाते हैं
मन की गहराइयों में।
कोमलतम भावों पर,
कठोरतम
आघात,
करते हैं
निकटतम लोग।
पीड़ा के नए आयाम।
ऐसे में
याद आते हैं
बीते हुए लम्हें,
मरमरी बाहों के घेरे
घनेरी जुल्फ के साये।
तब,
जगती है,
ज़िन्दगी पर,
एक नयी आस्था।
किसका गिला?
किसका शिकवा?
डूबती हुई
कामना को
काफ़ी है,
तिनके का सहारा।
उभरते हैं, फैलते हैं,
फिर,
डूब जाते हैं
मन की गहराइयों में।
कोमलतम भावों पर,
कठोरतम
आघात,
करते हैं
निकटतम लोग।
पीड़ा के नए आयाम।
ऐसे में
याद आते हैं
बीते हुए लम्हें,
मरमरी बाहों के घेरे
घनेरी जुल्फ के साये।
तब,
जगती है,
ज़िन्दगी पर,
एक नयी आस्था।
किसका गिला?
किसका शिकवा?
डूबती हुई
कामना को
काफ़ी है,
तिनके का सहारा।
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