समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 3 | 62
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अंकल सैम - यू.एस.ए का मानवीकरण; आम देख कर - पेड़ पौधे, जीव जन्तु, कार्बनिक पदार्थ में ले जाने की रोक; कूकुरमुत्ता - मशरूम; अमरीकी क्रिकेट - बेसबॉल;
33. आवासी गीत
मैं काहे अमरीका आया।
कितना गोरखधन्धा देखा, कितना कुछ जंजाल उठाया।
अंकल सैम भयंकर चाचा, फिर भी उनको बाप बनाया।
मैं काहे अमरीका आया।

मैं हूँ गोरखपुर का पंडित, मेरा एक दोस्त नज़दीकी।
अमरीका में रहते रहते, उसकी शकल हुई अमरीकी।
अन्दर से है हिन्दुस्तानी, ऊपर से लगता है वानर।
वह कहता था अमरीका में मिलते हैं सड़कों पर डॉलर।
सुन कर उसकी बातें, मैंने अमरीका का प्लान बनाया।
मैं काहे अमरीका आया।

सबसे पहले पासपोर्ट के अधिकारी ने टाँग अड़ाई।
सर्टिफिकेट जन्म का लाओ, उसने अपनी माँग बतायी।
जब मैं साक्षात सम्मुख हूँ, तो प्रमाण की क्या आवश्यकता?
मेरा अगर जन्म ना होता, तो किस तरह यहाँ आ सकता?
किसी तरह से, ऐसे वैसे, मैंने पासपोर्ट बनवाया।
मैं काहे अमरीका आया।

मैंने सोंचा दिल्ली जा कर वीसा बनवा लूँ अमरीकन।
लेकिन मिला नहीं मुझको दिल्ली एक्सप्रेस में रीज़रवेशन
श्री कंप्यूटर जी से ही अब, जो मिलता है वह मिलता है।
महायंत्र की बात निराली, उन पर किस का वश चलता है।
इसीलिए फिर एक कुली से वहीं बर्थ कंट्रोल कराया।
मैं काहे अमरीका आया।

अमरीकी एम्बेसी में जब दो घंटे की लैन लगाई।
तब उसने बतलाया, वीसा ऐसे नहीं मिलेगा भाई।
या तो कोई नौकरी पाओ, या मिलियन डॉलर दिखलाओ।
या अमरीकी से शादी कर, पहले ग्रीन कार्ड बनवाओ।
सुनकर ग्रीन कार्ड का मसला, मेरा रंग यलो पड़ आया।
मैं काहे अमरीका आया।

वहाँ एक एजेन्ट खड़ा था, बोला ऐ यूपी के भैया।
वीसा मैं बनवा दूँगा यदि खर्चो ग्यारह लाख रुपैया।
इधर उधर से कर्ज़ा लेकर उस एजेंट की भेंट चढ़ाया।
उसने मुझे एक मंदिर में मुख्य पुजारी पद दिलवाया।
करके पाप पुजारी बन कर, मैंने एच-टू वीसा पाया।
मैं काहे अमरीका आया।

दिल्ली एयरपोर्ट पर मेरी आगे पीछे हुई जंचाई।
फिर जहाज़ पर एयर होस्टेस ने भी मुझको डाँट पिलाई।
वह गोरों संग मुस्काती थी, लेकिन मुझसे कतराती थी।
तब देखा यदि मैं मुस्काऊँ, तो फिर वह भी मुस्काती थी।
मुस्काना है महामंत्र, तब यह सिद्धांत समझ में आया।
मैं काहे अमरीका आया।

अमरीका का कस्टम वाला मेरा लगेज देख चकराया।
उसने मेरा बकसा देखा, मेरा होल्डॉल खुलवाया।
वह अफ़सर इतना टुटपुंजिया, उसकी सारी बात निराली।
बीस लाख के सोने चाँदी पर तो उसने नज़र न डाली।
बीस रुपये के आम देख कर, वह ऑफिसर बहुत गुर्राया।
मैं काहे अमरीका आया।

किसी तरह से जब मैं आया केनेडी एयरपोर्ट के बाहर।
मैंने देखा सड़क किनारे, एक पड़ा था असली डॉलर।
सच कहता था दोस्त, यहाँ तो सड़कों पर डॉलर मिलते हैं।
मगर आज तो पहला दिन है, कल से काम शुरू करते हैं।
यही सोच कर खुश होकर मैंने वह डॉलर नहीं उठाया।
मैं काहे अमरीका आया।

भूख लगी तो मुझे किसी ने हॉट डॉग की बात सुझाई।
आलू पूड़ी खाने वाले को क्या घटिया बात सिखाई।
चाहे हॉट, कोल्ड हो चाहे, कुत्ता तो फिर भी है कुत्ता।
वह बोला, शाकाहारी हो, तो फिर खा लो कूकुरमुत्ता।
कूकुर कल्चर का यह कन्ट्री, कहाँ विधाता मुझको लाया।
मैं काहे अमरीका आया।

ड्राइविंग लायसेंस बनवाने, पहुँचा मैं मोटर के दफ़्तर।
उसने कहा, वामपन्थी तुम, यहाँ दाहिने का है चक्कर।
दायें बायें के चक्कर में, मैं तो कभी नहीं पड़ता हूँ।
मैं बोला मैं भारतवासी, मैं तो बीच सड़क चलता हूँ।
एक मध्यपंथी को दायें चलने पर मजबूर कराया।
मैं काहे अमरीका आया।

अमरीकी क्रीकेट भी देखा, ये सोंटे से बैटिंग करते।
लेकिन इनका खास खेल वह, जिस पर सब दीवाने रहते।
गोरिल्ला का भेष बनाये, जिसकी कोई मिसाल नहीं है।
यह कैसा फुटबॉल कि जिस में फुट का इस्तेमाल नहीं है।
खेल खेल में मुक्के मारें, क्या भीषण स्पोर्ट चलाया।
मैं काहे अमरीका आया।

एक दोस्त अमरीकी, मैं उसकी शादी में पहुँच न पाया।
मैंने कहा माँग कर माफ़ी, है अफसोस नहीं मैं आया।
कोई बात नहीं वह बोला, अगली शादी में आ जाना।
अपनी इस बीबी से मुझको, जल्दी डाइवोर्स करवाना।
चट शादी और पट तलाक का क्या घटिया दस्तूर चलाया।
मैं काहे अमरीका आया।

उसने कहा कि हम दोनों में बिल्कुल नहीं है कम्पेटिबिलिटी।
चार साल तक हुई कोर्टशिप, फिर किस तरह हुई यह ग़लती?
उसने कहा बड़ी मुश्किल है, हम दोनों के शौक अलग हैं।
अच्छी लगती मुझे औरतें, उसे पुरुष अच्छे लगते हैं।
शादी में ऐसी आज़ादी, क्या अमरीकी चलन चलाया।
मैं काहे अमरीका आया।

एक आदमी मुझे मिला, वह खुफ़िया इंस्पेक्टर लगता था।
जहाँ जहाँ भी मैं जाता था, वह मेरे पीछे आता था।
उससे मैंने कहा एक दिन, जब मुझमें यह हिम्मत आई।
तुम हो शायद एफ-बी-आई? वह बोला मैं जी-ए-वाई।
जिस का रोना भी मुश्किल हो, वह कैसे हँसमुख कहलाया।
मैं काहे अमरीका आया।

एक बार होटल में बैठी, मैंने देखी नारि सुहानी।
थी मिथ्या मुस्कान अधर पर, रुका रुका आँखों में पानी।
छ: बच्चों की जननी थी वह, लेकिन थी आजन्म कुँवारी।
कभी नहीं देखी थी मैंने पहले ब्रह्मचारिणी नारी।
अनब्याही माता भी देवी, कहकर मैंने शीश नवाया।
मैं काहे अमरीका आया।

कई पाठशालायें हैं, जिनमें सोलह वर्षीया कन्यायें।
जो हैं स्वयं बालिकायें, वे बनी अभी से ही मातायें।
छोटे बच्चों से भी कैसा, घृणित लोग पाप करते हैं।
विद्यालय में बंदूकें हैं, गोली से बच्चे मरते हैं।
हर बच्चा है एक धरोहर, हर संस्कृति ने हमें सिखाया।
मैं काहे अमरीका आया।

कितने दरियादिल देखे जो हर काले को मुजरिम कहते।
हैं सब लोग बराबर, लेकिन कुछ को अधिक बराबर कहते।
श्वेत श्रेष्ठता के विश्वासी, जो ह्त्या को पुण्य समझते।
मार्टिन लूथर किंग अभी भी, आये दिन मरते ही रहते।
ईसा के बन्दों ने कैसे, ईसा का सन्देश भुलाया?
मैं काहे अमरीका आया।

यह कविता है हँसी खुशी की, इसका कोई बुरा न माने।
मेरा यह प्रयास है, हँस कर हम अपने अवगुण पहचाने।
भारत भूमि महान विश्व की, अमरीका दुनिया का गहना।
पूरब - पश्चिम के संगम से, संभव है संसार सँवरना।
इसीलिए यह भारतवासी, आवासी बन करके आया।
मैं ऐसे अमरीका आया।

भारतीय संस्कृति है अपनी, अमरीकी समाज है अपना।
कला, गणित, विज्ञान विश्व को, भेंट हमारी, गौरव अपना।
ओलेम्पिक के स्वर्ण पदक हों, चाहे पुरस्कार हों नोबल।
मानव के उपलब्धि-चिन्ह ये, और प्रगति के खिलते शतदल।
विश्व अग्रणी अमरीका का, झंडा चंदा पर लहराया।
मैं ऐसे अमरीका आया।

एक द्वार से बाहर जाकर, अन्य द्वार से अंदर आये।
एक प्रवासी, आवासी बन, दो देशों में सेतु बनाये।
कोई नहीं पराया जग में, यह वसुधा कुटुम्ब है अपना।
सुख, समृद्धि, स्वातन्त्र्य सभी को, यह गांधी, लिंकन का सपना।
अमरीका का स्वर्णिम सपना, मेरी आँखों में भी आया।
मैं ऐसे अमरीका आया।

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