समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 1 | 63
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तीरगी - अंधेरा
मुक्तक

हम खड़े हो जाएँ अपनी बेड़ियों को तोड़ कर।
रोशनी की ओर चल दें तीरगी को छोड़ कर।
ख़त्म जब हो जाएंगी माज़ी की सब रुस्वाइयाँ,
खुद- बख़ुद मुड़ जाएगा यह वक़्त अगले मोड़ पर।

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