समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 1 | 43
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दूधिया – दूध समान; क़हकशाँ – आकाश गंगा
मुक्तक

पूछ कर देख लो बहारों से,
रात के दूधिया नज़ारों से,
चांदनी हो, कि क़हकशाँ हो तुम
पूछ लो चांद से, सितारों से।

*

मुझको महसूस करो प्यार की चाहत की तरह।
ढूँढ लो मुझको किसी दर्द की राहत की तरह।
तुम मेरी राह तको रात की तनहाई में
मैं चला आऊँगा दूर की आहट की तरह।

*