समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
भाग 1
| 12
लाल-ओ-गुल – कोंपल फूल और पत्ते; नुमायाँ – जो स्पष्ट दिखाई पड़ता हो, प्रकट; पिन्हाँ – छिपा हुआ
1. जीवन दर्शन
सब कहाँ कुछ लाल-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं।
(ग़ालिब)
ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं।
(ग़ालिब)
* * *
धरती के आँचल में कितने
सुन्दर स्वप्न सजे होंगे।
इनमें से कुछ हुए पंखुरित
बन कर कुसुम खिले होंगे।
किन्तु स्वप्न ऐसे भी हैं जो
धूल धूसरित हो जाते हैं।
कितने ऐसे फूल कि जो बस
खिलते ही मुरझा जाते हैं।
फूलों का खिलना, मुरझाना
उपवन की प्राचीन प्रथा है।
जीवन हैं उपवन का रूपक
हर जीवन की यही कथा है।
जैसे मुरझाये फूलों से
पूर्णत्व मिलता उपवन को।
वैसे ही टूटे सपनों से
मिलता एक तत्व जीवन को।
अपनी आँखों में जन्मे हैं
सपने आखिर सपने ही हैं।
पुष्पित हों या धूल धूसरित
बिखर जाएँ पर अपने ही हैं।
हर सपने में गुंथी हुयी है
अपनी ही अनकही कहानी।
अपनेपन की व्यथा अनोखी
चिर परिचित फिर भी अनजानी।
अप्रिय हो या स्वप्न सुहाना
मेरे ही मन का दर्पण है।
जो भी है स्वीकार मुझे है
यह मेरा जीवन दर्शन है।
सुन्दर स्वप्न सजे होंगे।
इनमें से कुछ हुए पंखुरित
बन कर कुसुम खिले होंगे।
किन्तु स्वप्न ऐसे भी हैं जो
धूल धूसरित हो जाते हैं।
कितने ऐसे फूल कि जो बस
खिलते ही मुरझा जाते हैं।
फूलों का खिलना, मुरझाना
उपवन की प्राचीन प्रथा है।
जीवन हैं उपवन का रूपक
हर जीवन की यही कथा है।
जैसे मुरझाये फूलों से
पूर्णत्व मिलता उपवन को।
वैसे ही टूटे सपनों से
मिलता एक तत्व जीवन को।
अपनी आँखों में जन्मे हैं
सपने आखिर सपने ही हैं।
पुष्पित हों या धूल धूसरित
बिखर जाएँ पर अपने ही हैं।
हर सपने में गुंथी हुयी है
अपनी ही अनकही कहानी।
अपनेपन की व्यथा अनोखी
चिर परिचित फिर भी अनजानी।
अप्रिय हो या स्वप्न सुहाना
मेरे ही मन का दर्पण है।
जो भी है स्वीकार मुझे है
यह मेरा जीवन दर्शन है।
*