समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
भाग 1
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क्षत – पीड़ित; विक्षत – टूटा हुआ, घायल; स्वाति - एक नक्षत्र जिसके दौरान चातक चिड़िया की प्यास बुझती है; अवगुंठन - घूंघट
11. वेदना गीत
मेरी व्यथा, वेदना मेरी।
यह अनुभूति, चेतना मेरी।
मेरी क्षत विक्षत आकांक्षा
मेरी अनपूरी अभिलाषा।
एक स्वाति की राह तक रही
मेरी मूक अतृप्त पिपासा।
अम्बर से न धरा पर उतरी
जीवन ज्योति ज्योत्सना मेरी।
मेरी व्यथा, वेदना मेरी।
यह अनुभूति, चेतना मेरी।
खोज रहीं खोयी मधुऋतु को
मेरी ये रेतीली राहें।
अपने ही टूटे सपनों से
बोझिल ये वीरान निगाहें।
मेरे मधुवन की मरीचिका
मेरी प्रीति, प्रेरणा मेरी।
मेरी व्यथा, वेदना मेरी।
यह अनुभूति, चेतना मेरी।
युगों युगों से भटक रहा है
मेरा शाश्वत एकाकीपन।
धीरे धीरे उठा रहा हूँ
अपनी पीड़ा का अवगुंठन।
अपनी सीमाओं में कुंठित
मेरी चाह, कामना मेरी।
मेरी व्यथा, वेदना मेरी।
यह अनुभूति, चेतना मेरी।
यह अनुभूति, चेतना मेरी।
मेरी क्षत विक्षत आकांक्षा
मेरी अनपूरी अभिलाषा।
एक स्वाति की राह तक रही
मेरी मूक अतृप्त पिपासा।
अम्बर से न धरा पर उतरी
जीवन ज्योति ज्योत्सना मेरी।
मेरी व्यथा, वेदना मेरी।
यह अनुभूति, चेतना मेरी।
खोज रहीं खोयी मधुऋतु को
मेरी ये रेतीली राहें।
अपने ही टूटे सपनों से
बोझिल ये वीरान निगाहें।
मेरे मधुवन की मरीचिका
मेरी प्रीति, प्रेरणा मेरी।
मेरी व्यथा, वेदना मेरी।
यह अनुभूति, चेतना मेरी।
युगों युगों से भटक रहा है
मेरा शाश्वत एकाकीपन।
धीरे धीरे उठा रहा हूँ
अपनी पीड़ा का अवगुंठन।
अपनी सीमाओं में कुंठित
मेरी चाह, कामना मेरी।
मेरी व्यथा, वेदना मेरी।
यह अनुभूति, चेतना मेरी।
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