समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 2 | 52
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शब – रात; सहर – सुबह; साहिल – किनारा;
24. एक उदास शाम और तनहाई
एक उदास शाम और तनहाई
मेरे गुलशन में यों बहार आई।

टूट जाती हैं जब तमन्नायें
साथ देती नहीं है परछाई।

नींद आने लगी ज़माने को
किस ने ली कसमसा के अंगड़ाई।

ज़िन्दगी लमहा लमहा मिलती है
मौत आई तो यकबयक आई।

बेज़ुबानी में दास्ताने हैं
दास्तानों में सिर्फ़ रुसवाई।

फिर से काली घटा के साये हैं
आज की शब भी बेकरार आई।

खो गये आसमान के तारे
अब जो आई सहर तो क्या आई।

जब भी डूबे हैं, पा गये साहिल
चश्मेतर की अजीब गहराई।

चन्द उलझे हुये से अफ़साने
ज़िन्दगी और कुछ नहीं लाई।

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