समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
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भाग 1 | 28
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तल्ख़ियों – कड़वाहट
12. मैं ज़िन्दा रहूँगा
आज मैंने देख ली है
कशमकश की इन्तहा,
नाक़ामयाबी का तमाशा,
छह महीने की अमावस।
आज मैं
ग़म के समुन्दर की तली से
ज़ोर से टकरा गया हूँ।
सोचता हूँ,
अब कहाँ से आएगीं गहराइयाँ,
जिनमें
हिमालय का अहम् भी डूब जाए?
इसलिए मैं,
चोट खाया सर उठा कर,
मौत को ललकारता हूँ।
आज से मैं
तल्ख़ियों के ज़ोर पर
ज़िन्दा रहूँगा।

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