35. साहब जी की नयी ज़िन्दगी (हास्य कविता)
साहब जी ग़ुस्से में बोले, इस दुनिया में वफ़ा नहीं है।
सब मतलब के यार, यहां पर कोइ किसी का सगा नहीं है।
मेरी बीबी भाग गयी है, मेरे शोफ़र को संग ले कर।
मुझे पता था बहुत दिनों से, उन दोनों में है कुछ चक्कर।
मेरे दिल को ठेस लगी है, पर विश्वास नहीं तोडूंगा।
अब मैं अपने ही बूते पर, नयी ज़िंदगी शुरू करूंगा।
जाने वाला चला गया पर, आंसू नहीं बहाऊंगा मैं।
कल से हिम्मत कर के अपनी मोटर स्वयं चलाऊंगा मैं।
सब मतलब के यार, यहां पर कोइ किसी का सगा नहीं है।
मेरी बीबी भाग गयी है, मेरे शोफ़र को संग ले कर।
मुझे पता था बहुत दिनों से, उन दोनों में है कुछ चक्कर।
मेरे दिल को ठेस लगी है, पर विश्वास नहीं तोडूंगा।
अब मैं अपने ही बूते पर, नयी ज़िंदगी शुरू करूंगा।
जाने वाला चला गया पर, आंसू नहीं बहाऊंगा मैं।
कल से हिम्मत कर के अपनी मोटर स्वयं चलाऊंगा मैं।
*