अप्रतिम कविताएँ

ये गजरे तारों वाले
इस सोते संसार बीच,
         जग कर सज कर रजनी बाले!
कहाँ बेचने ले जाती हो,
         ये गजरे तारों वाले?
मोल करेगा कौन,
         सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी।
मत कुम्हलाने दो,
         सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी॥
निर्झर के निर्मल जल में,
         ये गजरे हिला हिला धोना।
लहर हहर कर यदि चूमे तो,
         किंचित् विचलित मत होना॥
होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित,
         लहरों ही में लहराना।
'लो मेरे तारों के गजरे'
         निर्झर-स्वर में यह गाना॥
यदि प्रभात तक कोई आकर,
         तुम से हाय! न मोल करे।
तो फूलों पर ओस-रूप में
         बिखरा देना सब गजरे॥
- रामकुमार वर्मा
काव्यपाठ: वाणी मुरारका

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 आत्म-समर्पण
 ये गजरे तारों वाले
इस महीने :
'दिव्य'
गेटे


अनुवाद ~ प्रियदर्शन

नेक बने मनुष्य
उदार और भला;
क्योंकि यही एक चीज़ है
जो उसे अलग करती है
उन सभी जीवित प्राणियों से
जिन्हें हम जानते हैं।

स्वागत है अपनी...
अपनी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
होलोकॉस्ट में एक कविता
~ प्रियदर्शन

लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...

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राष्ट्र वसन्त
रामदयाल पाण्डेय

पिकी पुकारती रही, पुकारते धरा-गगन;
मगर कहीं रुके नहीं वसन्त के चपल चरण।

असंख्य काँपते नयन लिये विपिन हुआ विकल;
असंख्य बाहु हैं विकल, कि प्राण हैं रहे मचल;
असंख्य कंठ खोलकर 'कुहू कुहू' पुकारती;
वियोगिनी वसन्त की...

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