सोये हैं पेड़
कुहरे में
सोये हैं पेड़।
पत्ता-पत्ता नम है
यह सबूत क्या कम है
लगता है
लिपट कर टहनियों से
बहुत-बहुत
रोये हैं पेड़।
जंगल का घर छूटा,
कुछ कुछ भीतर टूटा
शहरों में
बेघर होकर जीते
सपनो में खोये हैं पेड़।
-
माहेश्वर तिवारी
Poet's Address: Harsingaar, B/M-48 Naveen Nagar, Muradabad
Ref: Naye Purane, 1999
होलोकॉस्ट में एक कविता
~
प्रियदर्शन
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गेटे (Goethe) की कविता
'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...
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