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कुमार रवीन्द्र
"वस्तुतः कविता भावावेग से नहीं उपजती। भाव-संवेग का प्रशांत मन के माध्यम से जब परिमार्जन एवं उदात्तीकरण होता है, तभी कविता की भावभूमि बन पाती है। कविता अश्रुपात नहीं है, वह करुणा एवं सह-अनुभूति की संतति है और उसमें भावों का स्वानुशासित रूप ही अभिव्यक्त होता है।" — कविता की उपज के विषय में कुमार रवीन्द्र के कुछ शब्द|

कुमार रवीन्द्र हिन्दी कविता की नवगीत विधा के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। दयानन्द कालेज हिसार, हरियाणा के स्नातकोत्तर अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष पद से ईस्वी सन् २००० में सेवानिवृत्त होने के उपरांत स्वतंत्र लेखन जारी है।

अब तक उनकी सात नवगीत संग्रह, एक मुक्तछंद कविताओं का संग्रह पाँच काव्य नाटक, एक यात्रावृत्त संकलन एवं एक अंग्रेजी की कविताओं का संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। प्रतिष्ठित संकलनों, पत्रिकाओं में पिछले पचास वर्षों से नवगीत, ग़ज़ल, दोहों, यात्रावृत्त, संस्मरण, समीक्षात्मक आलेखों का निरन्तर प्रकाशन। नवगीत के समीक्षा एवं शोध ग्रंथों में उल्लेख एवं चर्चा। इन्होंने सम्पूर्ण कृतित्व एवं हिंदी कविता की नवगीत विधा में अवदान पर विशेष शोध कार्य किया है।

हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से ’साहित्यमहोपाध्याय’ की मानद उपाधि, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से ’सहित्यभूषण’ सम्मान एवं तदर्थ पुरस्कार तथा अन्य कई राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मान इनको प्राप्त हैं।

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