अप्रतिम कविताएँ
किधौं मुख कमल ये
किधौं मुख कमल ये कमला की ज्योति होति,
किधौं चारु मुख चंद चंदिका चुराई है।
किधौं मृग लोचनि मरीचिका मरीचि किधौं,
रूप की रुचिर रुचि सुचि सों दुराई है॥
सौरभ की सोभा की दसन घन दामिनि की,
'केसव' चतुर चित ही की चतुराई है।
ऐरी गोरी भोरी तेरी थोरी-थोरी हाँसी मेरे,
मोहन की मोहिनी की गिरा की गुराई है॥
- केशवदास

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झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।

झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।

तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..

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