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जल कर दे
ईश्वर मुझको जल कर दे
सीमित कर सागर कर दे
मोड़े तू जिस ओर मुझे
चल दूँ दे जी-जान तुझे
चट्टानों से ढल कर के
निर्मल निर्झर सा कर दे
बहती जाऊं तेरी ओर
हर को लेकर अपनी ओर
पीड़ा मेरी हर कर के
वाणी मेरी सुन कर के
मंज़िल मेरी तय कर दे
ईश्वर मुझको जल कर दे
-
वाणी मुरारका
Vani Murarka
[email protected]
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'अन्त'
दिव्या ओंकारी ’गरिमा’
झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।
झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।
तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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