अप्रतिम कविताएँ
गीत बनाने की जिद है
दीवारों से भी बतियाने की जिद है
हर अनुभव को गीत बनाने की जिद है

         दिये बहुत से गलियारों में जलते हैं
         मगर अनिश्चय के आँगन तो खलते हैं

कितना कुछ घट जाता मन के भीतर ही
अब सारा कुछ बाहर लाने की ज़िद है

         जाने क्यों जो जी में आया नहीं किया
         चुप्पा आसमान को हमने समझ लिया

देख चुके हम भाषा का वैभव सारा
बच्चों जैसा अब तुतलाने की ज़िद है

         कौन बहलता है अब परी कथाओं से
         सौ विचार आते हैं नयी दिशाओं से

खोया रहता एक परिन्दा सपनों का
उसको अपने पास बुलाने की ज़िद है

         सरोकार क्या उनसे जो खुद से ऊबे
         हमको तो अच्छे लगते हैं मंसूबे

लहरें अपना नाम-पता तक सब खो दें
ऐसा इक तूफान उठाने की ज़िद है
- यश मालवीय
Poet's Address: E-111 Mehandouri Colony, Allahabad-4
Ref: Naye Purane, 1999

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'दिव्य'
गेटे


अनुवाद ~ प्रियदर्शन

नेक बने मनुष्य
उदार और भला;
क्योंकि यही एक चीज़ है
जो उसे अलग करती है
उन सभी जीवित प्राणियों से
जिन्हें हम जानते हैं।

स्वागत है अपनी...
अपनी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
होलोकॉस्ट में एक कविता
~ प्रियदर्शन

लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...

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राष्ट्र वसन्त
रामदयाल पाण्डेय

पिकी पुकारती रही, पुकारते धरा-गगन;
मगर कहीं रुके नहीं वसन्त के चपल चरण।

असंख्य काँपते नयन लिये विपिन हुआ विकल;
असंख्य बाहु हैं विकल, कि प्राण हैं रहे मचल;
असंख्य कंठ खोलकर 'कुहू कुहू' पुकारती;
वियोगिनी वसन्त की...

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