यह अमरता नापते पद

यह अमरता नापते पद
महादेवी वर्मा को एक छोटी-सी श्रद्धांजलि

बचपन में हमें कोई प्रेरणास्रोत मिले, जिसके आचरण, उप्लबधियों, और सहज आत्म विश्वास से हम प्रभावित हों, तो यह भी ज़िन्दगी का हमें एक उपहार है। महादेवी वर्मा ने अपने वक्त में नि:सन्देह हज़ारों लड़कियों को प्रभावित किया होगा, कई लड़कियों की प्रेरणास्रोत रही होंगी।

इस प्रस्तुति में, उन हज़ारों लड़कियों में से एक, शरद तिवारी, महादेवी वर्मा को श्रद्धांजलि दे रहीं हैं -- आत्म-विश्वास से ओतप्रोत, और अद्भुत सौन्दर्य से परिपूर्ण महादेवी वर्मा की रचना "पंथ होने दो अपरिचित" को स्वर देकर, और उनकी कुछ स्मृतियाँ हमारे संग साझा कर -

बात उन दिनों की है जब मैं क्रोस्थवेट कॉलेज, इलाहाबाद में ग्यारहवीं-बारहवीं कक्षा में पढ़ती थी। भारत की स्वतंत्रता को भी अभी 11 - 12 वर्ष ही हुए थे। उन दिनों इलाहाबाद हिन्दी साहित्य का गढ़ माना जाता था। हिन्दी के कई दिग्गज साहित्यकार इलाहाबाद के निवासी थे। इनमें से तीन प्रमुख नाम थे निराला, सुमित्रानंदन पंत, और महादेवी वर्मा, जिन्हे हिन्दी में छायावाद का अग्रदूत कहा जाता है। इन तीनो में मेरे लिए और मेरी सहपाठी सखियों के लिए महादेवी वर्मा का विशेष भावनात्मक महत्त्व था, क्योंकि वह भी हमारे क्रोस्थवेट कॉलेज में ही प्रशिक्षित हुयी थीं।

हमें छायावाद का ज्ञान तो नहीं था, किन्तु यह अच्छी तरह पता था कि महादेवीजी भारत के शीर्षस्थ कवियों में से हैं। यह हमारे लिए अत्यंत गौरव की बात थी कि ऐसी प्रसिद्ध हस्ती हमारे ही कॉलेज की छात्रा रह चुकी हैं। उन दिनों वह इलाहाबाद के एक अन्य कॉलेज, प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राध्यापिका के पद पर काम कर रहीं थीं। अक्सर ही वह हमारे कॉलेज के कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में आती थीं।

मैं कॉलेज के हिन्दी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में, विशेषरूप से गीत, संगीत और नृत्य में बहुत सक्रिय थी। इन कार्यक्रमों में भाग लेने के कारण मुझे महादेवी जी से साक्षात्कार करने का कई बार सौभाग्य मिला। उनका खादी परिवेश, साड़ी के पल्लू से ढका हुआ सर, आँखों पर मोटा चश्मा, और उनका शांत, सौम्य चेहरा अभी भी स्मृतिपटल पर अंकित है। उनकी गंभीर संतुलित आवाज़ कानों में गूंजती रहती है। उनके प्रेरणादायक भाषण तो कई बार सुने, किन्तु कभी उनके मुहँ से उनकी कविता सुनने का सौभाग्य नहीं मिला। मेरी एक और इच्छा थी जो पूरी नहीं हुयी। मेरा और मेरी सखियों का बहुत मन था कि उनके सामने उन्ही का कोई गीत गायें।

आज महादेवी जी तो नहीं हैं, किन्तु लगता है वह यहीं मंच पर सभापति के आसन पर विराजी, मेरा कविता पाठ सुन रही हैं। आज जैसे मेरी पुरानी मनोकामना पूरी हो रही है। इसलिए काव्यालय में उनकी इस कविता के पाठ करने में मुझे विशेष आनंद की अनुभूति हो रही है।

~ शरद तिवारी

पंथ होने दो अपरिचित

पंथ होने दो अपरिचित
प्राण रहने दो अकेला!

और होंगे चरण हारे,
अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;
दुखव्रती निर्माण-उन्मद
यह अमरता नापते पद;
बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला!

दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;
आज जिसपर प्यार विस्मित,
मैं लगाती चल रही नित,
मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला!

हास का मधु-दूत भेजो,
रोष की भ्रूभंगिमा पतझार को चाहे सहेजो;
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल स्वप्न-शतदल,
जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला!

~ महादेवी वर्मा
~ कण्ठ: शरद तिवारी
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शूल - कांटे; दुखव्रती - जिसने दुख का व्रत लिया है; उन्मद - मतवाला; तिमिर - अंधकार; अंक-संसृति - गोद की सृष्टि; विस्मित - आश्चर्यचकित; रोष - क्रोध; भ्रूभंगिमा - भौंह का आकार; शतदल - कमल

सम्पादकीय: पहले "आज जिसपर प्रलय विस्मित" ग़लती से "आज जिसपर प्यार विस्मित" लिखा था। वही ग़लती ऑडियो में रह गई है। पंक्ति महादेवी वर्मा की आत्मिका देख कर सुधारी गई है।
महादेवी वर्मा

1907-1987

महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद में हुआ| प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. किया तथा प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनीं और आजीवन वहीं रहीं| महादेवी वेदना की गीतकार हैं, जिसकी अभिव्यक्ति छायावादी शैली में प्रकृति के माध्यम से हुई है| काव्य संकलन "यामा" के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप, 1956 में पद्म भूषण और 1988 में पद्म विभूषण से उन्हें सम्मानित किया गया|

अपने बचपन के संस्मरण "मेरे बचपन के दिन" में महादेवी ने लिखा है कि जब बेटियाँ बोझ मानी जाती थीं, उनका सौभाग्य था कि उनका एक आज़ाद ख्याल परिवार में जन्म हुआ| उनके दादाजी उन्हें विदुषी बनाना चाहते थे| उनकी माँ संस्कृत और हिन्दी की ज्ञाता थीं और धार्मिक प्रवृत्ति की थीं| माँ ने ही महादेवी को कविता लिखने, और साहित्य में रुचि लेने के लिए प्रेरित किया|

निराला, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पन्त के साथ साथ महादेवी वर्मा को छायावाद का एक स्तम्भ माना जाता है| कविताओं के साथ साथ उनके गद्य को भी समीक्षकों की सराहना मिली| वह चित्रकला में भी निपुण थीं|

शरद तिवारी
शरद तिवारी इलाहाबाद में पली और बड़ी हुईं। उन्होंने वहीं प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम ए किया। बाद में इंग्लैंड के ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से शिक्षण की ट्रेनिंग ली। कुछ वर्षों तक पिलानी, राजस्थान में रहने के बाद, लगभग 32 वर्षों से अपने परिवार के साथ अमेरिका में निवास कर रही हैं। यहां के कोलोराडो प्रदेश में कई वर्षों तक एक माध्यमिक स्कूल में कंप्यूटर विज्ञान और प्रायोगिक विज्ञान की शिक्षिका के रूप में कार्यरत रहने के बाद रिटायर हुईं। हिंदी साहित्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उन्हें हमेशा से रूचि रही है। उन्होंने यहाँ भी भारतीय नृत्य और संगीत के कई कार्यक्रम आयोजित किये और एक हिंदी रेडियो के प्रसारण में भाग लिया।

इस छोटी-सी व्यक्तिगत श्रद्धांजलि के बाद, देखिए डॉ. कुमार विश्वास की महादेवी वर्मा पर बहुत ही सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति। इस वीडियो के द्वारा लगता है जैसे कि महादेवी जी के व्यक्तित्व से मुलाकात हो रही है| यही इस वीडियो को विशेष आकर्षक और सफल बना रहा है।
प्रकाशित 3 अगस्त 2018
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This Month :
'Ant'
Divya Omkari 'Garima'


jhar-jhar bahate netron se,
kaun saa saty bahaa hogaa?
vo saty banaa aakhir paanee,
jo kaheen naheen kahaa hogaa.

jhalakatee see bechainee ko,
kitanaa dhikkaar milaa hogaa?
baad men soche hai insaan,
pahale andhaa-baharaa hogaa.

talaash kare yaa aas kare,
kis par vishvaas zaraa hogaa?
kitanaa gaharaa hogaa vo dukh,
mRtyu se jo Dhakaa hogaa.

hokar nam phir band ho gaeen,
aa(n)khon ne kyaa sahaa hogaa?
ho jisakaa kShaN-kShaN mRtyu,
ye jeevan deergh lagaa hogaa.

jo maun huaa sah-sahakar maun,
us maun kaa bhed kyaa hogaa?
n gyaat kisee ko bhed vo ab,
vo bhed jo saath gayaa hogaa.

kuchh sheSh naheen isake pashchaat,
Read and listen here...
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